बढ़ते ऊर्जा की मांग ने एक खतरे की घंटी बजा दी है। संकट विश्व के सामने खड़ा है और यह आगे आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकता है। दुनिया की तमाम सरकारें ऊर्जा संकट की वजह से उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव को सीमित करने की भरसक कोशिश कर रही हैं पर कीमतों में बढ़ोतरी को रोकने में सक्षम नहीं हैं।
भारत में 135 थर्मल पावर प्लांट्स हैं, जिनमें से 63 के पास दो दिन या इससे कम का कोयला भंडार बचा है। 17 पावर प्लांट्स के पास कोयले का भंडार बिल्कुल समाप्त हो चुका है। 75 प्लांट्स के पास 5 दिन का कोयला भंडार है। भारत में कुल बिजली उत्पादन में थर्मल पावर प्लांट्स की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत है।
ये हालात तमाम देशों के केंद्रीय बैंकों और निवेशकों को परेशान कर रहे हैं। ऊर्जा की बढ़ती कीमतें मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान दे रही हैं, जो पहले से ही एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड-19 के सुस्त प्रभावों को दूर करने की कोशिश कर रही है। सर्दियों में ऊर्जा मांग में वृद्धि इस मामले को और खराब कर सकती है।
माना जा रहा है की बढ़ती मांग की वजह यह है की आर्थिक सुधार तेजी से हो रहा है। अमेरिका में भी प्राकृतिक गैस की कीमत अगस्त की शुरुआत के बाद से 47 प्रतिशत बढ़ चुकी है।आगे आने वाले महीनों में खराब मौसम से तनाव और पैदा होगा। विशेषकर उन देशों में जो बिजली उत्पादन के लिए प्राकृतिक गैस पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जैसे इटली और यूके। ब्रिटेन में और भी कठिन स्थिति है क्योंकि इसके पास भंडारण क्षमता की कमी है और यह फ्रांस के साथ टूटी हुई बिजली लाइन से होने वाले नुकसान से पहले ही जूझ रहा है।
ऐसे हालत में सौर ऊर्जा वैकल्पिक तौर पर दुनिया के लिए लाभदायक साबित होगा। सौर ऊर्जा के बैटरियों की मुख्य भूमिका है जो बैकअप के तौर पर काम करेंगे। ऐसे में बैटरी उत्पादकों के लिए सम्भावना दिख रही जो ज्यादा से ज्यादा बैटरी की मांग को पूरा करेंगे।