हम हिंदुस्तानियों की भाषा हिंदी है, यह सोच कर पूरे हिंदुस्तान को गर्व होता है एवं हिन्दी प्रेमियों द्वारा दिवस 14 सितंबर को पूरे भारत में पूरे जोश के साथ हिन्दी दिवस मनाया जाता है। आज हिंदी अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी है । हिंदी बोलने वाली आम जनता से लेकर, विभिन्न देशों में रहने वाले हिंदुस्तानी लोग हिंदी में बात कर गौरवान्वित महसूस करते हैं,एवं विदेशी लोग भी हिन्दी सीखने में रूचि ले रहे हैं। हिंदी सीखने और बोलने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। डिजिटल मीडिया में भी इसका प्रचार, प्रसार बढ़ता जा रहा है ।इंटरनेट की दुनिया में भी हिंदी का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। यह हमारे लिए, हिंदी भाषियों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है एवं हम भारतवासियों के लिए गर्व की बात है।
परंतु हिंदी की प्रतिष्ठा का यह सफर इतना आसान नहीं रहा है, जितना अभी के समय में हिंदी का प्रयोग हो रहा है। बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष का परिणाम है कि आज भारत की राजभाषा एवं राष्ट्र भाषा दोनों ही हिन्दी है, जो हिन्दी भाषा की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा रहा है किन्तु आजादी के बाद अंगेजी को 1965 तक के लिए राजभाषा घोषित की गई थी ,जिसे बाद में अनिश्चितकाल तक के लिए बढा दी गई। अब भी भारत में ज्यादातर सरकारी कामकाज अग्रेजी भाषा में ही होती है एवं कई राज्य में हिन्दी का विरोध अब भी हो रहा है।
हिंदी को राजभाषा व राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, राजा राममोहन राय, महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद,काका कालेकर, पुरुषोत्तम दास टंडन, सेठ गोविंद दास प्रमुख व्यक्ति रहे हैं। इन सभी नेताओं ने हिंदी को आम जनता के बीच संपर्क का साधन तो बनाया, साथ ही राजभाषा का दर्जा दिलाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
मुगल एवं अंग्रेजों के शासन का दुष्परिणाम यह था कि, भारत में आजादी से पहले हिंदी कमजोर अवस्था में पड़ी हुई थी। कचहरी से लेकर विद्यालय तक में अंग्रेजी और उर्दू भाषा का प्रयोग था। विद्यालय में हिंदी का प्रयोग राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद के अथक प्रयास से संभव हुआ है। सर सैयद अहमद खान और राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद के बीच उर्दू और हिंदी को लेकर जबरदस्त टक्कर थी जिसमें राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की जीत हुई और हिंदी में भारत के विद्यालयों में पढ़ाई होने लगी।
हिंदी के प्रचार के लिए 1883 में कुछ उत्साही छात्रों ने, काशी नगर प्रचारिणी सभा की स्थापना की, जिसमें बाबू श्यामसुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र ठाकुर, शिव कुमार सिंह प्रमुख थे ।इनके प्रथम सभापति राधा कृष्ण दास थे। 1900 ईस्वी में पहली बार हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया, जो सफल रहा एवं हिंदी को कचहरी की भाषा घोषित की गई।
हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु भारत में बहुत सारे संस्थाओं का उदय हुआ, जिसमें 1910 में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, 1918 दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास, 1936 राज्य भाषा प्रचार समिति वर्धा, महाराष्ट्र राज्य भाषा पुणे आदि प्रमुख हैं।
हिंदी के प्रचार प्रसार में आर्य समाज का योगदान भी महत्वपूर्ण है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” हिंदी में लिखा है एवं अपने विचार हिंदी में व्यक्त किए। स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू समाज में तर्क शक्ति को जागृत करने के लिए हिंदी को तर्क का माध्यम बनाया। उन्होंने कहा तर्क वितर्क के लिए हिंदी गद्य को प्रचार का माध्यम बनाया, क्योंकि गद्य ही हिंदी शक्ति एवं बौद्धिक चेतना को जागृत करता है। संविधान सभा के गठन के साथ 1946 में आजाद भारत के लिए संविधान तैयार करते समय राष्ट्रभाषा के चयन हेतु हिंदी को चुना गया। उस वक्त उर्दू और अंग्रेजी भाषा ज्यादा प्रचलित थी। हिंदी को राष्ट्रभाषा चुने जाने के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 14 सितंबर 1953 को हिंदी दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई। तब से हिंदी ने अपनी प्रतिष्ठा एवं विकास का सफर शुरू किया। हमारी मातृभाषा के सम्मान में जय हिन्दी, विजय हिन्दी।
सुनीता कुमारी
बिहार