भारत मे बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, मगर देखा जाये तो यह समस्या अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति होती तो बहुत पहले ही हल की जा सकती थी। हम जनसंख्या के दृष्टि से अपने पड़ोसी देश से तुलना कर सकते हैं जैसे चाईना। लेकिन हम वैसा न करके यूएस, ब्रिटेन और यूएई जैसे देशों के साथ अपनी तुलना करते है, जोकि नहीं होना चाहिये। खैर! बेरोजगारी की समस्या को देखें तो ये किसी एक सरकार की देन नहीं है अपितु आजादी के बाद जितनी भी सरकारें आयीं सब ने इस समस्या को बढ़ाया ही है, चाहे जो भी मज़बूरी रही हो, किसी ने भी इसको खत्म करने के लिये इच्छा शक्ति नहीं दिखाई, जिसका नतीजा ये हुआ कि आज हर नागरिक सरकारी नौकरी चाहता है, कोई आपना रोजगार नहीं करना चाहता, जनता आलसी हो गई है। हर कोई चाहता है एक सरकारी नौकरी मिल जाये, फिर शादी में अच्छे दहेज भी मिल जायेगा, सरकारी नौकरी होगी तो काम भी ज्यादा नहीं करना पड़ेगा और अवकाश भी ख़ूब सारा मिलेगा तथा सेवानिवृति के बाद पेंशन भी मिलेगी। ये सब ऐसी धारणा है जो जनता के दिमाग से जल्दी नहीं जायेगा, दूसरा अच्छे शिक्षा की कमी, नेताजी लोग अपने बच्चों को तो अच्छी शिक्षा के लिये देश से बाहर भेज देते हैं लेकिन यहाँ के लोगों को वही थकी-हारी शिक्षा मिलती है, जहां पढाने बाला भी सिफारिश पर नौकरी पाया होता है और पढ़ने बाला भी चोरी कर के पास होता है तथा फिर उसी सरकार को गाली देता है कि सरकारें हमें नौकरी नहीं देती। हम बीए,एमए कर के घर बैठे हैं जबकि उसको भी पता है कि उसको डिग्री कैसे मिली है और उसको कितना नॉलेज है। इस सब का ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ सरकारें हैं। ये हमारे समाज में जो होता आ रहा है उसकी देन भी है। जैसे कुछ बातों पर ध्यान दिलाना चाहूँगा। पहला तो जनसंक्या है ही, दूसरा ये कि अगर आपके परिवार मे पाँच या छह सदस्य है उसमें से कोई एक ही कमाने वाला होता है बाक़ी जो भी हो बेटे या बेटी, तब तक नहीं कमाना चाहेंगे जब तक उनकी जरूरतें पूरी होती रहेगीं या घर के एकलौते कमाने वाले पे बोझ बने रहते हैं और वो कमाने वाला बेचारा उस बोझ के तले दबा रहता है।
अब मैं आपको बताता हूँ कि क्यूँ मैं आपको भारत का चाइना के साथ तुलना करने के लिए बोल रहा हूँ, क्यूंकि आज़ादी के समय दोनों की एक जैसी स्थिति थी सिर्फ फर्क़ था लोकतंत्र और राजतंत्र का। अब जो समस्या है वो
पहला तो ये कि भारत और चाइना की जनसंख्या तक़रीबन एक जैसी है और समस्या भी एक जैसा है। दूसरा भारत और चाइना तक़रीबन एक साथ आजाद हुए लेकिन चाईना कितना आगे पहुँच गया और हम बहुत पीछे रह गये। इसके बहुत से कारण हैं : पहला तो हम राजनीति के शिकार हुए।
दूसरा जाति और धर्म मे बँटे रहे, जिस कारण एक-दूसरे की टांग खींचने की प्रवृति बनी।
तीसरा समस्या को पाल के रखा कभी हल करने की कोशिश नहीं की।
चौथा प्रतिज्ञा और परीक्षा की हमेशा कमी रही।
पांचवां स्वरोजगार की मानसिकता ना होना।
छठा हुनरमंद को प्रोत्साहन नहीं मिलना।
सातवाँ अच्छे लोगों का कदर नहीं होना जिसके कारण डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट्स, बिजनेसमैन सब देश छोड़कर जिस देश में उनका कदर होता है वहाँ चले जाते हैं। जिनके यहाँ रहने से रोजगार विकसित हो सकती थीं जो नहीं हो पाया। जबकि दूसरी तरफ चाईना का जो सबसे बड़ा समस्या था वो था बाढ़ आना जिसे वहाँ कि सरकार ने बड़े ही ताकत से खत्म किया, दूसरा उन्होंने अपने देशवासियों को काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। आज उसका परिणाम ये है कि हमारे भगवान कि मूर्ति, खाने का कप प्लेट, दिवाली की लाइट भी वही से बनकर आती है और हम खरीदते हैं। इसकी वजह से वहा कि एकोनोमी बढ़ती चली गई। कोई सरकारी नौकरी नहीं सब अपना कुछ न कुछ बना रहे होते हैं और दुनिया को बेचते हैं। वहीँ दूसरी ओर हमारे यहाँ सरकारों ने क्या किया अपने देशवासियो को पन्गू बना दिया, मुफ्त का सबकूछ! पानी मुफ्त, बिजली मुफ्त, गैस मुफ्त, ट्रान्सपोर्टेशन मुफ्त, जब सबको सब कुछ मुफ्त मिलेगा तो वह काम क्यों करेगा? ऐसे बेरोज़गारों को सरकारें अपने फायदे के लिऐ अपनी पार्टियों कि तरफ से धरना प्रदर्शन में यूज करते हैं लेकिन कोई अपना काम नहीं करना चाहता जिससे वह रोजगार देने वाला बन सके। सभी चाहते हैं सरकारी नौकरी मिले, जबकि देखा जाये तो सरकारी नौकरी में काम करने वाले लोगों को बहुत दिक्कत होती है क्योंकि काम करने वाला चाहे जितना भी अच्छा काम कर ले तनख्वाह उतनी ही मिलेगी जो पे स्केल है, और जो कुछ नहीं करता उसको भी वही तनख्वा मिलती है, जबकि अगर स्वरोजगार करते हैं तो जीतना मेहनत करेंगे उतना रुपया मिलेगा।
हमारे यहा सर्विस सेक्टर बहुत सारे हैं मगर मैन्यूफैक्चरिन्ग सेक्टर बहूत कम है। अब अगर कोई सीए, सी एस, ऐडवोकेट, आईटी ईन्जिनीयर, ट्रैवल ऐजेन्ट बगैरह को देखें तो वो कितने लोगों को नौकरी दे देंगे, लेकिन वहीं अगर कोई खिलौना बनाने की फैक्ट्री लगा ले या किसी भी प्रोडक्ट की फैक्ट्री लगा ले तो हज़ारों लोगों को उनसे सीधे तौर से या वैसे रोजगार मिलेगा। हमारे यहाँ के लोग बाहर जा के सब कुछ करते है लेकिन यहाँ नहीं करते या नहीं करना चाहते। यही समस्या की जड़ है और इसका समाधान भी हमें ही करना होगा। हम जितने ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्ट मेन्यूफेक्चरिन्ग पर ध्यान देंगे, जितना ज्यादा स्वरोजगार पर ध्यान देंगे, जितना ज्यादा अच्छी शिक्षा पर ध्यान देंगे, जितना ज्यादा शिक्षक पर ध्यान देंगे, जितना ज्यादा जनसंख्या को ना बढ़ने देने पर ध्यान देंगे बिना धर्म को बीच में लाये, हमारे बेरोजगारी की समस्या ऊतना जल्दी ठीक हो जाएगी हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले में होंगे।
गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)