निराशा में छुपी आशा,
विश्वास की परिभाषा,
ऐसे नहीं मुरारी की,
मीरा दीवानी हुई।
भूल गई हर कांक्षा,
घर द्वार की समीक्षा,
ऐसे नहीं मोहन की,
मीरा मोहनी हुई।
वंशी धुन माथ छुआ,
विष भी अमृत हुआ,
ऐसे नहीं गोविंद की,
परम ध्यानी हुई।
पंचत्व भक्ति में आई,
प्रतिमा में समा गई,
ऐसे नहीं केशव की,
प्रेम संगीनी हुई।
ज्योति नव्या श्री
रामगढ़ , झारखंड
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