“निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय”
इस दोहे में कबीर दास जी ने बताया है कि हमें अपने अपनी निंदा करने वालों को अर्थात आलोचकों को अपने आस पास ही रखना चाहिए क्योंकि यह बिना पानी या साबुन के अर्थात बिना किसी परिश्रम के हमारे स्वभाव को निर्मल करने का कार्य करते हैं। हर व्यक्ति के अंदर कुछ अच्छाइयां हैं और कुछ बुराइयां भी हैं।वैसे तो हर व्यक्ति को अपनी अच्छाइयों और कमियों की जानकारी होनी चाहिए पर अधिकतर मनुष्य अपने अहंकारी स्वभाव के कारण यह भूल जाते हैं। हमारे आसपास के लोग ही हमें हमारी अच्छाइयों और बुराइयों से अवगत कराते हैं। जब किसी बात को लेकर व्यक्ति की आलोचना या निंदा होती है तब उसे अपने अंदर की कमियों का पता चलता है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह हमेशा अपनी प्रशंसा ही सुनना चाहता है। जब उसे अपनी आलोचना सुननी पड़ती है तो वो सहन नहीं कर पाता है।
अधिकतर लोग अपनी निंदा करने वाले व्यक्ति को नापसंद करने लगते हैं और उनसे दूरी बना लेते हैं। यह बात भी सही है कि कहीं कहीं आलोचना, निंदा हमारे आत्मविश्वास को तोड़ने का कार्य करती है।कुछ व्यक्ति अपने प्रति इतने ज्यादा संवेदनशील होते हैं कि वह इस चीज को हृदय से लगा लेते हैं और अपने आत्मविश्वास को खोने लगते हैं।
यहां पर आवश्यकता है कि हर व्यक्ति आलोचना और निंदा के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएं। वो ये जानने की कोशिश करें कि जिस बात के लिए आलोचना की जा रही है क्या वाकई वो कमियां उनके अंदर है, व्यक्ति उन कमियों को दूर कर अपने अंदर सुधार लाएं।
अगर किसी व्यक्ति को परेशान करने के लिए उसकी निंदा की जा रही है तो वह इन चीजों पर ध्यान ना दे। इसके लिए व्यक्ति को अपनी बुद्धि और विवेक से काम लेना चाहिए।
अंत में, मैं यह कहना चाहती हूं कि व्यक्ति की वाणी ही दवा का कार्य करती है और दर्द देने का कार्य भी करती है। हमें हमेशा अच्छा और सकारात्मक बोलने का प्रयास करना चाहिए। दूसरे व्यक्ति को प्रोत्साहित करना चाहिए।
कबीर दास जी ने भी कहा है
“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ”
बिना कारण किसी की निंदा या आलोचना करना अच्छा कार्य नहीं है। हमें परनिंदा से बचना चाहिए परंतु यदि किसी के सुधार के लिए हमें किसी की आलोचना करनी भी पड़े तो हमें हमेशा सकारात्मक शब्दों के साथ उसकी कमियां बताते हुए उसके स्वभाव में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए।
(स्वरचित एवं मौलिक)
शालिनी शर्मा”स्वर्णिम”
इटावा,उत्तर प्रदेश